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दायरा / कैफ़ी आज़मी रोज़ बढ़ता हूँ जहाँ से आगे फिर वहीं लौट के आ जाता हूँ बारहा तोड़ चुका हूँ जिन को इन्हीं दीवारों से टकराता हूँ रोज़ बसते हैं ...